अघोर दिग्बन्धन मन्त्र
ॐ ह्रीं स्फुर स्फुर दुरितान्तक पूर्व दिशं बन्धय बन्धय। मां रक्ष रक्ष। प्रस्फुर प्रस्फुर पञ्चानन आग्नेय दिशं बन्धय बन्धय। मां रक्ष रक्ष। घोर पशुपते दक्षिण दिशं बन्धय बन्धय। मां रक्ष रक्ष। घोरतर तमरूप रौद्ररूपिन् नैऋति दिशं बन्धय बन्धय। मां रक्ष रक्ष। चट् चट् त्रिलोचन पश्चिम दिशं बन्धय बन्धय। मां रक्ष रक्ष। प्रचट् प्रचट् धूर्जटे वायव्य दिशं बन्धय बन्धय। मां रक्ष रक्ष। कह कह गङ्गाधर उत्तर दिशं बन्धय बन्धय। मां रक्ष रक्ष।वम वम व्योमकेश ईशान दिशं बन्धय बन्धय। मां रक्ष रक्ष।बन्ध बन्ध पुरहर भूर्भुवस्वराद्युपरि लोकेषु सर्वभयेभ्यो मां रक्ष रक्ष। घातय घातय दनुजान्तक अतलादि सप्त लोकेषु सर्वभयेभ्यो मां रक्ष रक्ष। हुं फट् स्वाहा अस्त्राय फट् सर्वदिशं बन्धय बन्धय मां रक्ष रक्ष अन्तरं बन्धय बन्धय आकाशं बन्धय बन्धय मां रक्ष रक्ष।
– संकल्प कर १० सहस्त्र जप का पुरश्चरण करे। प्रयोग काल में मन्त्र के अर्थों का अनुसन्धान पूर्वक मात्र एक बार जप हीं पर्याप्त है।