तन्त्र के रहस्यात्मक पूजन चक्रार्चन में गृहस्थ साधकों को पंच-पात्र की अनुमति है। विशेष योग्य साधक दश पात्र तक कर सकते हैं। दश से ज्यादा और षोडश पात्र तक देवताओं का पात्र है। पंचपात्र तक का अनुष्ठान चक्रानुष्ठान है और नवपात्रात्मक चक्र आनन्दानुष्ठान है। प्रत्येक पात्र स्वीकार करने के साथ क्या कर्त्तब्य है इससे साधक गण अनिभिज्ञ है। इस सम्बन्ध में “निर्वाण-तन्त्र” क्या कहता है देखे:
प्रथमे च गुरुध्यानं ततो ब्रह्म-निरूपणम्।
प्राणायामं(न्यासजाले) तृतीये च चतुर्थे जपमाचरेत्।।९।।
प्रथम पात्र स्वीकारने के बाद गुरु का ध्यान, दूसरे पात्र-स्वीकार के बाद ब्रह्म(इष्ट) चिन्तन-ध्यान, तीसरे पात्र के बाद प्राणायाम या स्वेष्ट मन्त्र का न्यास-जाल, चतुर्थ पात्र के बाद मन्त्र-जप और पञ्चम पात्र ग्रहण के बाद पंचम-साधन का सम्पादन।
गुरुध्यानं हि तज्ज्ञानं प्राणायामं(न्यास-जाले) जपं मनु।
प्रदक्षिणं नमस्कारं स्तोत्रं गानञ्च नृत्यनम्।
पंचमम् परमेशानि दशमानन्दमाचरेत।।११।।
प्रथम पात्र में गुरु ध्यान, द्वितीय पात्र के साथ इष्ट चिन्तन, तृतीय पात्र के बाद प्राणायाम(न्यासजाल), चतुर्थ पात्र स्वीकार के बाद मन्त्र-जप, पंचम पात्र के बाद प्रदक्षिणा, षष्टम् पात्र के बाद नमस्कार, सप्तम पात्र के बाद स्तोत्र-पाठ, अष्टम पात्र के बाद गायन, नवम पात्र के बाद नृत्य, दशम पात्र के बाद पंचम साधन करे तदन्तर आनन्दानुष्ठान करे।