दारिद्रय-दहन व धन-प्रदायक साधन
बहुत लोगों को धन की कामना से "श्रीसूक्त" और "कनकधारा- स्तोत्र" का पाठ करते या करवाते और मनोवांछित परिणाम नहीं मिलने पर ऐसे प्रयोगो के प्रति अश्रद्धा उत्पन्न होते/ प्रकट करते देखा हूँ। इसका मूल कारण लोगों का स्वगुरु होना है। लोग पुस्तक दॆख कर अनुष्ठान/साधना प्रारम्भकर देते हैं। आधुनिक साधकों के लिए गुरु की आवश्यक्ता हीं नही रह गयी है और अगर गुरु चाहिए भी तो टेलिवीजनादि पर बहुल-प्रचार व आडम्बर से युक्त स्वनामधन्य गुरु। परिणाम धन और समय का अपव्यय।साधन की सारी बातें ग्रंथो में लिखित नहीं रहता।साधन की "कुंजी" गुरु के पास हीं होती है।
स्वामी अक्षोभ्यानन्द जी (भैरव-कुण्ड, विन्ध्याचल) से प्राप्त और "कुलभूषण" "प्रयाग-गौरव" पण्डित रमादत्त शुक्ल जी द्वारा सम्पादित यह "श्रीसूक्त" तथा "कनकधारा-स्तोत्र" का सम्मिलित साधन जो अनेको बार का अनुभूत है:
विनियोग: ॐ अस्य श्रीकनकधारा मन्त्रस्य, भगवान शंकर ऋषि:, जगती छन्द:, श्री महालक्ष्मी-भुवनेश्वरी देवता, श्री बीजं, ह्रीं शक्ति:, ऐं कीलकं, मम समस्त दारिद्र-दु:ख निवारण पूर्वक धनाकर्षण पाठे विनियोग: ।
ऋष्यादिन्यास:
ॐ भगवान भगवान शंकर ऋषये नम: शिरसी।
ॐ जगती छन्दसे नम: मुखे।
ॐ श्री महालक्ष्मी-भुवनेश्वरी देवतायै नम: हृदि।
ॐ श्री बीजाय नम: गुह्ये।
ॐ ह्रीं शक्तये नम: पादयो:।
ॐ ऐं कीलकाय नम: नाभौ।
ॐ मम समस्त दारिद्र-दु:ख निवारण पूर्वक धनाकर्षण पाठे विनियोगाय नम: सर्वाङ्गे ।
करन्यास:
ॐ श्रां अंगुष्ठाभ्यां नम:।
ॐ श्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा।
ॐ श्रूं मध्यमाभ्यां वषट्।
ॐ श्रैं अनामिकाभ्यां हुम्।
ॐ श्रौं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्।
ॐ श्र: करतलकरपृष्ठाभ्यां फट्।
हृदयादिन्यास:
ॐ श्रां हृदयाय नम:।
ॐ श्रीं शिरसे स्वाहा।
ॐ श्रूं शिखायै वषट्।
ॐ श्रैं कवचाय हुम्।
ॐ श्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ श्र: अस्त्राय फट्।
ध्यान:
ॐ लक्ष्मी क्षीरसमुद्रराजतनया श्रीरंगधामेश्वरी।
दासीभूत समस्तदेववनितां त्रैलोक्यदीपांगराम्।।
श्रीमन्मद-कराक्ष-लब्ध-वियद-ब्रह्मेन्द्र-गंगाधराम् ।
त्वां त्रैलोक्य-कुटुम्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ।।
पूजन: बाह्य या मानस पूजन करें।
श्री कनकधारा स्तव पाठ(चिन्तामणि-मन्त्र से सम्पुटित):
क-ए-ई-ल-ह्रीं ह-स-क-ह-ल-ह्रीं स-क-ल-ह्रीं श्रीं-क्लीं-ॐ श्रीं-ह्रीं-ऐं ॐ-ह्रीं-ॐ अंगं हरे:………………………………………देवताया:।।१।।
……….
…….
……..
……….
स्तुवन्ति…………………………………बुध-भाविताशया:।।१५।। क-ए-ई-ल-ह्रीं ह-स-क-ह-ल-ह्रीं स-क-ल-ह्रीं श्रीं-क्लीं-ॐ श्रीं-ह्रीं-ऐं ॐ-ह्रीं-ॐ
श्रीसूक्त पाठ(चिन्तामणि मन्त्र से सम्पुटित प्रत्येक ऋचा):
क-ए-ई-ल-ह्रीं ह-स-क-ह-ल-ह्रीं स-क-ल-ह्रीं श्रीं-क्लीं-ॐ श्रीं-ह्रीं-ऐं ॐ-ह्रीं-ॐ हिरण्यवर्णां………………….………….जातवेदो म आवह।।१।। क-ए-ई-ल-ह्रीं ह-स-क-ह-ल-ह्रीं स-क-ल-ह्रीं श्रीं-क्लीं-ॐ श्रीं-ह्रीं-ऐं ॐ-ह्रीं-ॐ
क-ए-ई-ल-ह्रीं ह-स-क-ह-ल-ह्रीं स-क-ल-ह्रीं श्रीं-क्लीं-ॐ श्रीं-ह्रीं-ऐं ॐ-ह्रीं-ॐ तां म……………………..…………….पुरुषानहम्।।२।। क-ए-ई-ल-ह्रीं ह-स-क-ह-ल-ह्रीं स-क-ल-ह्रीं श्रीं-क्लीं-ॐ श्रीं-ह्रीं-ऐं ॐ-ह्रीं-ॐ
क-ए-ई-ल-ह्रीं ह-स-क-ह-ल-ह्रीं स-क-ल-ह्रीं श्रीं-क्लीं-ॐ श्रीं-ह्रीं-ऐं ॐ-ह्रीं-ॐ ………………… …………………. ………………. ……………….
क-ए-ई-ल-ह्रीं ह-स-क-ह-ल-ह्रीं स-क-ल-ह्रीं श्रीं-क्लीं-ॐ श्रीं-ह्रीं-ऐं ॐ-ह्रीं-ॐ य: शुचि: प्रयतो…………………………श्रीकाम: सततं जपेत्।।१६।। क-ए-ई-ल-ह्रीं ह-स-क-ह-ल-ह्रीं स-क-ल-ह्रीं श्रीं-क्लीं-ॐ श्रीं-ह्रीं-ऐं ॐ-ह्रीं-ॐ
विलोम श्री कनकधारा स्तव पाठ(चिन्तामणि-मन्त्र से सम्पुटित):
क-ए-ई-ल-ह्रीं ह-स-क-ह-ल-ह्रीं स-क-ल-ह्रीं श्रीं-क्लीं-ॐ श्रीं-ह्रीं-ऐं ॐ-ह्रीं-ॐ स्तुवन्ति ये……………………….……………………बुध भीविताशया:।।१५।।
नमोऽस्तु…………………..…………………..शार्ङ्गायुध-वल्लभायै।।१४।। ……………………………………. ……………………………………… …………………………………….. ……………………………………
अंगं हरे: ……………………………………………………….देवताया: ।।१।। क-ए-ई-ल-ह्रीं ह-स-क-ह-ल-ह्रीं स-क-ल-ह्रीं श्रीं-क्लीं-ॐ श्रीं-ह्रीं-ऐं ॐ-ह्रीं-ॐ