बचपन में मैं जब गाँव जाता था तब शादी-व्याह के समय माँ या चाची के साथ कुलदेवी के मन्दिर भी चला जाता था।आम बोल चाल की भाषा में कुलदेवी का नाम बन्नी परमेश्वरी बोलते थे। बन्नी कहते है बालिका को अर्थात् बाला परमेश्वरी। जब मैं दीक्षित हुआ तो ज्ञात हुआ कि मेरी कुलदेवी ” श्री बाला त्रिपुर सुन्दरी ” हीं मुझे ईष्ट के रूप में प्राप्त हुई हैं। ये उर्ध्व आम्नाय की नायिका है। श्रीविद्या साधना का प्रारम्भ इन्ही से होता है।
त्रिपुरा त्रिविधा देवि बालां तु प्रथमं श्रृणु ।
यया विज्ञातया देवि साक्षात्सुरगुरुर्भवेत् ।।
त्रिपुरा तीन प्रकार की है। प्रथम है बाला त्रिपुरा। इनको जानकर व्यक्ति साक्षात् देवगुरु हो जाता है।
गङ्गातरङ्गकल्लोलवाक्यपटुत्वप्रदायिनी ।
महासौभाग्यजननी महासारस्वतप्रदा ।।
यह गङ्गा की तरंग के अविच्छिन्न् कल्लोल(शब्दों) की तरह महासारस्वत(वाक्पटुत्व) प्रदान करने वाली महासौभाग्य की जननी है।
सर्वतीर्थमयी देवी स्वर्णरत्नादिदायिनी ।
सर्वलोकमयी देवी सर्वलोकवशंकरी ।।
यह समस्त तीर्थ स्वरुप है। यह स्वर्णरत्नादि प्रदान करने वाली है। यह “भू: ” आदि चतुर्दशलोक स्वरूपा है। इसका मन्त्र जप सर्वलोक को वश में करने वाला है।
सर्वक्षेत्रमयी देवी सर्वकार्यार्थसाधिका ।
महामोक्षप्रदा शान्ता महामुक्तिप्रदायिनी।।
यह समस्त क्षेत्र स्वरूप है। यह समस्त कार्यों व प्रयोजनों को साधित करती है। यह महामोक्ष(जीवित रहते जीवन्मुक्त की अवस्था) प्रदान करती है। सभी उपद्रवो/कष्टों को शान्त करने के कारण शान्ता है। यह महामुक्ति(कैवल्य) प्रदान करती है।
वक्त्रकोटिसहस्त्रैस्तु जिह्वाकोटिशतैरपि।
वर्णितुं नैव शक्येयं विद्येयं त्र्यक्षरी परा ।।
इन त्र्यक्षरी पराविद्या (तीन अक्षरों के महामन्त्र) का वर्णन सहस्त्रकोटि मुख द्वारा , शतकोटि जिह्वा द्वारा नही किया जा सकता।