श्रीविद्या साधनअंगभूता श्रीमहागणपति साधन के विषय में जानना प्रत्येक श्रीविद्योपासक के लिए आवश्यक है। ‘श्रेयांसि बहुविघ्नानि’ कल्याणकारी कार्यों में अनेक विघ्न आते हैं फिर ” श्रीविद्या साधन ” जो आत्यन्तिक कल्याण करने वाले साधनों में सर्वश्रेष्ठ है, के मार्ग में आने वाले विघ्नों का क्या कहना। ‘परशुराम कल्पसूत्र’ में लिखा है- ” इत्थं सद्गुरोराहितदीक्ष: महाविद्याराधनप्रत्यूहापोहाय गणनायकीं पद्धतिमामृशेत “। सद्गुरु से दीक्षा ग्रहण करके श्रीविद्या साधना में आने वाले ‘प्रत्यूहों’ विघ्नों की निवृत्ति के लिए गणेश की उपासना करनी चाहिए। छोटे कार्यों में स्मरण, बड़े कार्यों में पूजा और महान कार्यों में गणेश उपासना करनी चाहिए।
श्रीगणेश भोग-प्रधान देवता हैं। विघ्न बाधाओं की निवृत्ति और इष्ट-सिद्धि मिलती है इनकी उपासना से। यों तो इनके मन्त्रों के विविध प्रकार यथा एकाक्षर गणेश, हेरम्ब गणेश,हरिद्रा गणेश, क्षिप्रसाधन गणपति, त्रैलोक्यमोहन गणपति आदि हैं, परन्तु श्रीविद्या साधन के अन्तर्गत ” श्रीमहागणपति ” का ही साधन होता है।
महागणपति यन्त्र का पात्रासादन पूर्वक आवरण-अर्चन कर इनके सहस्त्र-नामों से मोदक अर्पण करने से दु:साध्य कार्य भी हो जाते हैं।
इसी तरह इनके २१ नामों से दूर्वा, लाजा से अर्चन तथा चतुर्थी को मोदक से अर्चन करने से भी कार्य सिद्ध होते हैं।
इनका चतुरावृत्ति(४४४) तर्पण भी प्रतिदिन करने से विघ्न-नाश पूर्वक अभीष्ट-सिद्धि होती है।