मन्त्रों के दोष
छिन्नो रुद्ध: शक्तिहीन: पराङ्गमुख उदीरित:।
बधिरो नेत्रहीनश्च कीलित: स्तम्भितस्तथा।।
दग्ध: स्त्रस्तश्च भीतश्च मलिनश्च तिरस्कृत:।
भेदितश्च सुषुप्तश्च मदोन्मत्तश्च मूर्च्छित:।।
हृतवीर्यश्च हीनश्च प्रध्वस्तो बालक: पुन:।
कुमारस्तु युवा प्रौढो वृद्धोनिस्त्रिंशकस्तथा।।
निर्वीर्य: सिद्धिहीनश्च मन्द: कूटस्तथा पुन:।
निरंशक: सत्त्वहीन: केकरो जीवहीनक:।।
धूमितालिङ्गितौ स्यात्तां मोहितस्तु क्षुधार्त्तक:।।
अतिदृप्तोऽङ्गहीन: स्यादतिक्रुद्ध: समीरित:।।
अतिक्रूरश्च सव्रीड: शान्तमानस एव च।
स्थानभ्रष्टश्च विकलो निऽस्नेह: परिकीर्त्तित:।।
अतिवृद्ध: पीड़ितश्च वक्ष्याम्येषां त लक्षणम्।।
रावण के मन्त्र-दोष सम्बन्धित प्रश्न करने पर महादेव ने समस्त मन्त्रों को उपरोक्त छिन्न, रुद्ध: आदि दोषों में से किसी न किसी दोष से दूषित बताया। बिना इन दोषों को दूर किये आप चाहे करोड़ो मन्त्र जप ले पर कोई लाभ नहीं होगा अपितु विपरीत फल की प्राप्ती होगी।