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साधको की साधना-सहचरी के लक्षण

KAULBHASKAR GURU JI

2022-10-16

साधको की साधना-सहचरी को शक्ति कहते हैं। पूरी शाक्तोपासना शक्ति के सहयोग पर हीं निर्भर है। शक्ति के बिना पूजन को पशु-पूजन कहा गया है।

शक्तिश्च कथ्यते देवि ! श्रृणुष्व सुरसुन्दरि।

त्रयोदशाब्दाद् ऊर्ध्वं या पञ्चविंशतिवार्षिकी।

सुन्दरी तु विशेषेण प्रसूतावाप्रसूतिका।

अवश्यं पञ्चमं कुर्यात् शक्तिमात्रे महेश्वरि।। – (शब्दकल्पद्रुमे)

सदाशिव दीक्षित ने कर्पूरस्तवराज स्तोत्र के भाष्य में शक्ति के विशद लक्षणों का वर्णन किया है, यथा-

तरुणीं सुन्दरीं रम्यां चंचलां कामलोलुपाम्।

कालीभक्तां जपासक्तां महाकामकुतूहलाम्।।

दर्शनान्मोहिनीं साध्वीं कटाक्षादिप्रमोचिनीम्।

नायिकाष्ट-तुल्य-युक्तां क्रोधमात्सर्य वर्जिताम्।।

सर्वदोषविहीनाङ्गीं विकारपरिवर्जिताम्।

जपासक्तां समासाद्य सर्वं संसाधयेत् शिवे।।

साधना के लिए शक्ति का दीक्षित होना परमावश्यक है। गन्धर्व-तन्त्र कहता है-

अदीक्षिताङ्गनासंगात् सिद्धिहानिर्भवेत् शिवे।

तस्मात् सर्वप्रयत्नेन दीक्षयेन्निज कौलिनीम्।।