सामान्यार्घ्य और कारण-कलश स्थापन :
अपने दक्ष भाग में एक अधोमुख त्रिकोण उसके बाहर वृत और उसके बाहर एक चतुरस्र का मंडल रक्तचन्दन या कुंकुम या सिन्दुर से बनाये और उसका निम्न मन्त्र से पूजन करे:
ॐ श्री ललिता त्रिपुर सुन्दर्या: सामान्यार्घ्य पात्राधार मंडलाय नम:
अब उस मंडल पर त्रिपदी या अभाव में पुष्प का आधार रख उसका निम्न मन्त्र से पूजन करे:
ॐ रं वह्नि मण्डलाय धर्मप्रद दश कलात्मने श्री ललिता त्रिपुर सुन्दर्या: सामान्यार्घ्य पात्राधाराय नम:
(नोट: विस्तृत विधि में यहाँ अग्नि की दश कलाओ का पृथक-पृथक आवाहन, प्राणप्रतिष्ठा व पूजन कर सकते हैॆ।)
इसके बाद ‘फट्’ मन्त्र से चाँदी/ताम्बा के पात्र को उक्त त्रिपदी या पुष्प आधार पर रखे। अब पात्र का निम्न मन्त्र से पूजन करे:
ॐ अं अर्क मण्डलाय अर्थप्रद द्वादश कलात्मने श्री ललिता त्रिपुर सुन्दर्या: सामान्यार्घ्य पात्राय नम:
(नोट: विस्तृत विधि में यहाँ सूर्य की द्वादश कलाओ का पृथक-पृथक आवाहन, प्राणप्रतिष्ठा व पूजन कर सकते हैॆ।)
अब ‘नम:’ मन्त्र से पात्र को शुद्ध जल से भरे और उक्त जल का पूजन करे:
ॐ उं सोम मण्डलाय कामप्रद षोडश कलात्मने श्री ललिता त्रिपुर सुन्दर्या: सामान्यार्घ्य पात्र द्रव्याय नम:
(नोट: विस्तृत विधि में यहाँ चन्द्रमा की सोलह कलाओ का पृथक-पृथक आवाहन, प्राणप्रतिष्ठा व पूजन कर सकते हैॆ।)
अब अंकुश मुद्रा से निम्न मन्त्रों द्वारा सूर्य मण्डल से तीर्थों का आवाहन जल में करने की भावना करे:
ॐ गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति!
नर्मदे सिन्धु कावेरि! जलेऽस्मिन्न सन्निधिं कुरु।।
अब इस जल में मूल मन्त्र से गन्धादि छोड़े। इसके बाद ‘ वं ‘ बीज से आठ बार अभिमन्त्रित करे और धेनु-मुद्रा दिखाये। फिर जल को मत्स्य मुद्रा से आच्छादित करे। इसके बाद योनि मुद्रा से नमस्कार करे।
कलश स्थापन व कारण शोधन:
अपने वाम भाग में एक बिन्दु उसके बाहर अधोमुख त्रिकोण उसके बाहर षट्कोण उसके बाहर वृत और उसके बाहर एक चतुरस्र का मंडल रक्तचन्दन या कुंकुम या सिन्दुर से बनाये। मण्डल का सामान्यार्घ्य के जल से प्रोक्षण करे और निम्न मन्त्र से गन्धाक्षत से पूजन करे:
ॐ आधार शक्तिभ्यो नम:
‘फट्’ – मन्त्र से त्रिपदी या पुष्प आधार को उक्त मण्डल पर रखे और निम्न मन्त्र से पूजन करे:
रं वह्नि मण्डलाय धर्मप्रद दश कलात्मने श्री ललिता त्रिपुर सुन्दर्या: कारण-कलश पात्राधाराय नम:
(नोट: विस्तृत विधि में यहाँ अग्नि की दश कलाओ का पृथक-पृथक आवाहन, प्राणप्रतिष्ठा व पूजन कर सकते हैॆ।)
इसके बाद ‘फट्’ मन्त्र से कलश को उक्त त्रिपदी या पुष्प आधार पर रखे। अब कलश को पुष्पमाला से अलंकृत कर निम्न मन्त्र से गन्धाक्षत से पूजन करे:
ॐ देवीरूप कलशाय नम:
इसके बाद उस कलश को निम्न मन्त्र से आधार पर रखे:
ॐ देवतात्मक कलशं स्थापयामि नम:
अब कलश में निम्न मन्त्र से पूजन करे: अं अर्क मण्डलाय अर्थप्रद द्वादश कलात्मने श्री ललिता त्रिपुर सुन्दर्या: कलशाय नम:
(नोट: विस्तृत विधि में यहाँ सूर्य की द्वादश कलाओ का पृथक-पृथक आवाहन, प्राणप्रतिष्ठा व पूजन कर सकते हैॆ।)
अब अलग पात्र में कारण ले निम्न प्रक्रिया से शोधन करे:
वौषट् – पढ कर देखे
फट् – से फट्कार कर रक्षण करे
हुँ – से अवगुण्ठन मुद्रा दिखाये
वषट् – पढ कर शुद्ध करे
स्वाहा – से पुष्पगन्धाक्षत से पूजन करे
नम: – पढ हाथ रखे
और हाथ रखे हुए हीं निम्न एकादश मन्त्रों को पढे:
(१)ॐ ह्रीं ऐं श्रीं गीं ह्स्ख्फ्रें पथिक देवताभ्यो हुँ फट् स्वाहा
(२)ॐ ह्रीं श्रीं ह्स्ख्फ्रें अस्फालिनी ग्राम चाण्डालिनी हुं फट् स्वाहा
(३)ॐ ह्रीं श्रीं ह्स्ख्फ्रें स्पर्श चाण्डालिनी हुं फट् स्वाहा
(४)ॐ ह्रीं श्रीं ह्स्ख्फ्रें दृष्टि चाण्डालिनी हुं फट् स्वाहा
(५)ॐ ह्रीं श्रीं ह्स्ख्फ्रें क्रोध चाण्डालिनी हुं फट् स्वाहा
(६)ॐ ह्रीं श्रीं ह्स्ख्फ्रें सृष्टि चाण्डालिनी हुं फट् स्वाहा
(७)ॐ ह्रीं श्रीं ह्स्ख्फ्रें घट चाण्डालिनी हुं फट् स्वाहा
(८)ॐ ह्रीं श्रीं ह्स्ख्फ्रें तपनवेध चाण्डालिनी हुं फट् स्वाहा
(९)ॐ ह्रीं श्रीं ह्स्ख्फ्रें निर्दोष चाण्डालिनी हुं फट् स्वाहा
(१०)ॐ ह्रीं श्रीं ह्स्ख्फ्रें पशुपाश चाण्डालिनी हुं फट् स्वाहा
(११)ॐ ह्रीं श्रीं ह्स्ख्फ्रें सर्वजन दृष्टि-स्पर्श-दोष चाण्डालिनी हुं फट् स्वाहा
अब निम्न मन्त्र ३ बार जपे:
ॐ छ्रां छ्रीं छ्रूं छ्रैं छ्रौं छ्र: छुरिके अलिशोभने विकारान् अस्य द्रव्यस्य हर हर स्वाहा
अब निम्न मन्त्र १० बार जपे:
ॐ एकमेव परं ब्रह्म स्थूल सूक्ष्म मयं ध्रुवम्।
कचोद्भवां ब्रह्म हत्यां तेन ते नाशयाम्यहम्।।
ॐ वेदानां प्रणवो बीजं ब्रह्मानन्द मयं यदि।
तेन सत्येन हे देवि! ब्रह्नशापं व्यपोहतु।।
ॐ वां वीं वूं वैं वौं व: ब्रह्मशाप विमोचितायै सुधा देव्यै नम:
अब निम्न मन्त्र १० बार जपे:
ॐ सूर्य मण्डल सम्भूते वरूणालय सम्भवे।
अमाबीज मये देवि! शुक्र शापाद् विमुच्यताम।।
ॐ शां शीं शूं शैं शौं श: शुक्र शाप विमोचितायै सुधा देव्यै नम:
अब निम्न दो मन्त्रों को १२-१२ बार जपे:
ॐ ह्रीं श्रीं क्रां क्रीं क्रूं क्रैं क्रौं क्र: सुरे! कृ्ष्ण शापं विमोचय विमोचय अमृतं स्रावय स्रावय स्वाहा
ॐ रां रीं रूं रैं रौं रं र: रुद्रशाप विमोचितायै सुधादेव्यै नम:
अब नीचे के दो मन्त्रों को ३-३ बार जपे:
ॐ पवमान: परानन्द: पवमान: परोरस:।
पवमानं परं ज्ञानं तेन ते पावयाम्यहम्।।
ॐ कृष्ण शापाद् विमुक्ता त्वं विमुक्ता ब्रह्म शापत:।
विमुक्ता रुद्र शापाच्च पवित्रा भव साम्प्रतम्।।
अब ॐ क्षं लं हं सं षं शं वं लं रं यं मं भं बं फं पं नं धं दं थं तं णं ढं डं ठं टं ञं झं जं छं चं ङं घं गं खं कं अ: अं औं ओं ऐं एं लॄं लृं ऋृं ऋं ऊं उं ईं इं आं अं मूल मन्त्र – पढते हुए कारण कलश को कारण से पूर्ण करे।
अब कारण से भरे कलश में निम्न मन्त्र से पूजन करे:
ॐ सोम मण्डलाय कामप्रद षोडश कलात्मने श्री ललिता त्रिपुर सुन्दर्या: कलश पात्र द्रव्याय नम:
(चाहे तो चन्द्रमा की सोलह कलाओ का पृथक-पृथक आवाहन, प्राण प्रतिष्ठा, पूजन कर सकते हैं)
अब कलश के पास तिरस्करिणी का पूजन करे। पहले ध्यान करे:
नीलं हयं समधिरूह्य पुर: प्रयान्ती।
नीलांशुकाभरण माल्य विलेपनाढ्या।।
निद्रा पटेन भुवनानि तिरोदधाना।
खड्गायुधा भगवति परिपातु भक्तान।।
अब निम्न तीन मन्त्रों को ३-३ बार जपे:
(१) ॐ ह्रीं श्रीं नमो भगवति माहेश्वरि! सर्व पशुजन मनश्चक्षुस्तिरस्करणं कुरु कुरु स्वाहा
(२) ॐ ह्रीं परम-प्रकाशिनि परमाकाश शून्य निवासिनी सूर्य चन्द्राग्नि भक्षिणी पात्रं विश विश स्वाहा
(३) ॐ ऐं क्लीं सौ: ईं ग्लौं ह्सौ: स्हौ: नमो भगवति त्रैलोक्यमोहिनी तिरस्करिणी महामाये ह्रीं क्रीं माहेशेवरि श्रीं सर्वजन वाग् बन्धिनी सकल मन: चक्षु: श्रोत्र जिह्वा घ्राण पाद हस्त तिरस्करणं कुरु कुरु हूं हूं हूं ठ: ठ: ठ: स्वाहा
(नोट: तीसरे मन्त्र का जप सिर्फ श्रीविद्योपासक हीं करेॆ)
अब कलश के द्रव्य में अ-क-थ त्रिकोण की कल्पना करे और उसमें निम्न मन्त्र से पूजन करे:
ह्सौ: मण्डलाय.नम:
अब कलश के द्रव्य में आनन्द-भैरव का ध्यान करे:
ॐ सूर्य कोटि प्रतीकाशं चन्द्र कोटि सुशीतलम्।
अष्टादश भुजं देवं पंच-वक्त्रं त्रिलोचनम्।।
वृषारूढं नीलकण्ठं सर्वाभरण भूषितम्।
कपाल खट्वाङ्ग धरं घण्टा डमरू वादिनम्।।
पाशांकुश धरं देवं गदा मुसल धारिणम्।
खड्ग खेटक पट्टीशं मुद्गरं शूल दण्ड धृक।।
विचित्र खेटकं मुण्डं वरदाभय धारिणम्।
लोहितं देव देवेशं भावयेत् साधकोत्तम:।।
अब अ-क-थ त्रिकोण के मध्य निम्न मन्त्र से आनन्दभैरव का गन्धाक्षत से पूजन करे:
हसक्षमलवरयूं आनन्दभैरवाय वषट्
अब आनन्दभैरवी का ध्यान करे:
भावयेच्च सुधां देवीं चन्द्र कोटि युत प्रभाम्।
हिम कुन्देन्दु धवलां पंचवक्त्रां त्रिलोचनाम्।।
अष्टादश भुजैर्युक्तां सर्वानन्द करोद्यताम्।
प्रहसन्तीं विशालाक्षीं देव देवस्य सम्मुखीम्।।
अब पूर्ववत अ-क-थ त्रिकोण में आनन्दभैरवी का निम्न मन्त्र से पूजन करे:
सहक्षमलवरयीं आनन्दभैरव्यै वौषट्
अब आनन्दभैरव और आनन्दभैरवी के सामरस्य का ध्यान करे और उनके दिव्य स्राव से कलश के द्रव्य को अमृतमय होने की भावना करे और निम्मन मन्त्र का ८ बार जप करे:
ऐं प्लूं स्रौं जूं स: अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणी अमृतं स्रावय स्रावय स्वाहा
अब निम्न दहर-विद्या का ३ बार जप करे:
ॐ हंस: शुचिषत् वसुरन्तरिक्ष सद्धोता वेदीषदतिथिर्दुरोणसत्।
नृषद्वर सद्ऋत सद् व्योम सदब्जा गोजा ऋतजा अद्रिजा ऋतं वृहत्।
अब निम्न आनन्द-गायत्री का १० बार जप करे:
ऐं ह्रीं श्रीं आनन्देश्वरि विद्महे सुधादेव्यै धीमहि तन्नो अर्धनारीश्वरि प्रचोदयात्
(नोट: उपर्युक्त मन्त्र के ऐं ह्रीं श्रीं के बदले अन्य महाविद्या के उपासक यथेष्ट बीज लगावें)
अब निम्न मधुमत्त सूक्त से अभिमन्त्रित करे:
ॐ मधुवाता ऋतायते मधु-क्षरन्ति सिन्धव: । माध्वीर्न सन्त्वोषधीर्मधु-नक्तमुतोषसो मधुमत् पार्थिव गुंग रज:। मधु-द्यौरस्तु न: पिता। मधुमानन्नो वनस्पतिर्मधुमाम् अस्तु सूर्य:।माध्वीर्गावो भवन्तु न:। मधु मधु मधु।।
(नोट: उपरोक्त सूक्त में एक वैदिक अक्षर है जिसका उच्चारण गुंग होता है अत: मन्त्र में उस शब्द के बदले गुंग लिख दिया गया है)
अब मूल मन्त्र से ८ बार अभ्मन्त्रित करे।
अब कलश में अंकुश मुद्रा से सूर्य मण्डल से तीर्थों का आवाहन निम्मन मन्त्रों से करे:
ॐ गङ्गे च यमुने चैव, गोदावरि सरस्वति!
नर्मदे सिन्धु कावेरि! द्रव्येऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
अब ‘ वं ‘ बीज से ८ बार पढ धेनुमुद्रा दिखाये। इसके बाद मत्स्य-मुद्रा से आच्छादित करे। इसके बाद ‘ हुं ‘ बीज ८ बार जप अवगुण्ठन-मुद्रा दिखाये। इसके बाद मूल-मन्त्र ८ बार जप योनिमुद्रा दिखायें।