परम गोपनीय व सर्वश्रेष्ठ कौल-धर्म !
दर्शनेषु च सर्वेषु, चिराभ्यासेन मानवा:।
मोक्षं लभन्ते कौले तु, सद्य एव न संशय:।।
दर्शनों का अत्यधिक समय तक अभ्यास करने पर ही उससे मनुष्यों को मोक्ष प्राप्त होता है, परन्तु कौल को शीघ्र हीं मुक्ति मिल जाती है। इसमें तनिक भी संशय नहीं।
सर्वे धर्माश्च देवेशि!, पुनरावर्तका: स्मृता।
कुल-धर्म-स्थिता ये च, ते सर्वेऽप्यनिवर्तका:।।
सभी धर्मवालों को यहाँ फिर लौट कर आना होगा परन्तु कुल-धर्म वाले सब मुक्त हो जाएँगे।
कुलाचारं विना देवि!, कलौ सिद्धिर्न जायते।
तस्मात् सर्व प्रयत्नेन, साधयेत् कुलसाधनम्।।
बिना कुलाचार के इस कलियुग में सिद्ध अर्थात् मोक्ष सम्भव नहीं है। अत: सभी प्रकार से कुलाचार साधन का प्रयत्न करना चाहिए।
ब्राह्मणै: क्षत्रियैर्वैश्ये:, शूद्रैरेव च जातिभि:।
कौलमार्ग-प्रभावेण, कर्तव्यं जप-पूजनम्।।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सभी जातियों को कौलमार्ग के अनुसार जप-पूजा करनी चाहिए।
गङ्गायां पतिताम्भासि, यान्ति गाङ्गेयतां यथा।
कुलाचारे विशन्तोऽपि, सर्वे गच्छन्ति कौलताम्।।
जैसे गङ्गा में बह कर मिलने वाले सब जल गङ्गाजल हो जाते हैं, उसी प्रकार कुलाचार में प्रवेश करने पर सभी कौल हो जाते हैं।
कुल-पूजा समं नास्ति, पुण्यमन्यज्जगत्-त्रये।
तस्माद् य: पूजयेद् भक्त्या, भुक्ति-मुक्तयो: स भाजनम्।।
तीनों लोक में कुलपूजा के समान कोई पूजा नहीं। जो इस पूजा को भक्तिपूर्वक करता है वह भोग और मोक्ष दोनों का अधिकारी हो जाता है।
जना स्तुवन्तु निन्दन्तु, लक्ष्मीस्तिष्ठतु गच्छतु।
मृत्युरद्य युगान्ते स्यात्, कुलं च परिवर्जयेत्।।
चाहे लोग प्रशंसा करे या निन्दा, चाहे धन रहे या चला जाए, चाहे अभी मृत्यु हो या युग के अन्त में, व्यक्ति कुलधर्म का परित्याग न करे।