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शक्ति-साधना का संक्षिप्त क्रम

KAULBHASKAR GURU JI

2023-07-12

शक्ति-साधना का संक्षिप्त क्रम

महाशक्ति के उपासकों को शाक्त कहते हैं। तन्त्रशास्त्रों में उस महाशक्ति की उपासना-प्रणालियाँ सविस्तार वर्णित है। इसलिए तन्त्रशास्त्र हीं शाक्तों का प्रधान ग्रन्थ है। तन्त्रशास्त्र का अन्यतम नाम आगम-शास्त्र है। आगम की परिभाषा देखे-

आगतं शिववक्त्रेभ्यो गतञ्च गिरिजामुखे

मतं श्रीवासुदेवस्य तस्मादागम उच्यते ।। – रुद्रयामल

अर्थात् जो शिवमुख से निकल कर पार्वती के मुख में अवस्थित कर रहा है और जिस पर वासुदेव की सम्मति है, उसी को आगम कहते हैं। जब आगमशास्त्र वासुदेव-सम्मत है, तो फिर इसके साथ वेदों का कोई असामञ्जस्य हो ही नहीं सकता, यह स्पष्ट है। आगम कहने से सत् आगम हीं समझना होगा। आज तथाकथित तन्त्रविद् गुरुओं ने जो विकृत आगम फैला रखा है उस असदागम की निन्दा तो सदाशिव ने भी की है। यथा-

आवाभ्यां पिशितं रक्तं सुराश्चैव सुरेश्वरि

वर्णाश्रमोचितं धर्ममविचार्यार्पयन्ति ये

भूतप्रेतपिशाचास्ते भवन्ति ब्रह्मराक्षसा:।। – आगमसंहिता

शक्ति के उपासक काली, तारा, जगद्धात्री, अन्नपूर्णा प्रभृतियाँ शक्तिमूर्त्ति की उपासना करते हैं। शक्ति की उपासना करने की इच्छा रखने वाले प्रथमत: सद्गुरु से मन्त्र ग्रहण करें। बिना दीक्षा के मनुष्य पशुओं में परिगणित होते हैं, अतएव अदीक्षितों का समस्त कार्य ही वृथा है-

उपचारसहस्रैस्तु अर्चितं भक्तिसंयुतम्

अदीक्षिताार्चनां देवा न गृह्णन्ति कदाचन।।

– भक्तिपूर्वक सहस्र उपचारों से अर्चना करने पर भी देवगण उस अदीक्षित की अर्चना कभी भी स्वीकार नहीं करते।

उसी कारण से यत्नपूर्वक गुरु ग्रहण कर उनसे मन्त्र की प्राप्ती करे। शक्तिमन्त्र के उपासकों को दीक्षा के साथ शाक्ताभिषेक भी लेना चाहिए। यथा-

अभिषेकं विना देवि कुलकर्म करोति य:

तस्य पूजादिकं कर्म अभिचाराय कल्पते।

अभिषेकं विना देवि सिद्धविद्यां ददाति य:

तावत्कालं वसेद्घोरे यावच्चन्द्रदिवाकरौ।। –वामकेश्वर तन्त्र

शाक्तगण की पहली दीक्षा के साथ शाक्ताभिषेक होना चाहिए। इसके बाद पूर्णता के लिए पादुका के साथ पूर्णाभिषेक का विधान है। कई जगह बिना पादुका के भी पूर्णाभिषेक का विधान देखने में आता है जो वास्तव में लघु-पूर्णाभिषेक है।

वर्षों तक चलने वाला क्रमदीक्षा तो भाग्यवश ही किसी को प्राप्त होती है। क्रमदीक्षा से ही षड्ध्व का शोधन हो पूर्ण शिवत्व की प्राप्ती होती है। क्रमदीक्षा अर्थात् दीक्षाओं यथा- साम्राज्यदीक्षा, महासाम्राज्याभिषेक, मेधादीक्षा, महामेधादीक्षा का क्रम। पूर्ण-क्रम-दीक्षा से साधक को सर्वाम्नाय के मन्त्रों का अधिकार प्राप्त होता है।