आगमोक्त शिव तत्व
आगमोक्त षट्-त्रिंशत् तत्त्वों को स्थुल रूप से आत्मतत्त्व, विद्यातत्त्व और शिवतत्त्व इन तीन विभागों में रखा गया है। आत्मतत्त्व में २४ तत्त्वों, विद्यातत्त्व में ७ तत्त्वों और शिवतत्त्व में ५ तत्त्वों का समावेश है। शिवतत्त्व के अंगीभूत शिव तत्त्व, शक्ति तत्त्व, सदाशिव तत्त्व, ईश्वर तत्त्व और विद्या(शुद्धविद्या) तत्त्व पर एक संक्षिप्त विवेचना :
(१) शिव तत्त्व- अपनी इच्छा, ज्ञान, और क्रियात्मिका तीनों हीं शक्तियों को बिन्दु अवस्था में शान्ता नाम्नि शक्ति का आश्रय ले, तीनों गुणों की साम्यावस्था में निस्पन्दस्थित, बिन्दुरूपेण परमशिव ही एकोऽहं बहुस्यामिति जैसी सिसृक्षा से जब युक्त होता है तो वह शिवतत्त्व के नाम से जाना जाता है।
(२) शक्ति तत्त्व – सिसृक्षा हीं बिन्दु से विसर्ग का रूप ले इच्छा-ज्ञान-क्रिया के समन्वितरूप में त्रिकोणाकार हो जब प्रस्फुटित होती है तो वह शक्ति तत्त्व के नाम से जानी जाती है।
(३) सदाशिव तत्त्व- परमशिव सिसृक्षा से शिव और शक्ति के सायुज्य के पश्चात् अहम्, कर्त्ता अर्थात् अपने अस्तित्व का स्वंय बोध करने और दूसरों को बोध कराने की स्थिति में जब आ जाता है तो वह सदाशिव तत्त्व के नाम से जाना जाता है।
(४) ईश्वर तत्त्व- जब उस सदाशिव को अपने से भिन्न विश्व का बोध होने लगता है अर्थात् जब उसे यह बोध होने लगता है कि यह विश्व है और मैं उससे भिन्न किन्तु उसका विशिष्ट रूप हूँ तो वही सदाशिव तत्त्व ईश्वर तत्त्व के नाम से जाना जाता है।
(५) शुद्धविद्या तत्त्व- यह समग्र विश्व मेरा ही विस्तार है, सदाशिव का यह ज्ञान/अवबोध हीं विद्या तत्त्व है। इसी से ईशावास्यमिदं सर्वं का बोध होता है।
उपर्युक्त पाँचो तत्त्व किसी न किसी रूप में परमशिव से हीं सम्बद्धित है और उन्हीं के प्रकाशक है अतएव उपर्युक्त पाँचो तत्त्वों का समावेश शिवतत्त्व के अन्तर्गत किया जाता है।