श्रीविद्या-खड्गमाला १५ माला- मन्त्रों का समुह है। निष्काम व सकाम भेद से इन मालाओं के अलग-अलग ध्यान हैं। यहाँ सकाम ध्यान और उनके फल की चर्चा हम करेगे।
(१) पहली माला का ध्यान:
तादृशं खड्गमाप्नोति, येन हस्त-स्थितेन वै।
अष्टादश-महाद्वीप-साम्राज्य-भोक्ता भविष्यति।।
फल:
साधक को ऐसे खड्ग की प्राप्ती होती है, जिसके हाथ में रहने से वह १८ महाद्वीपों के साम्राज्य का भोग करने वाला हो जाएगा।
(२) दूसरी माला का ध्यान:
तादृशं पादुका-युग्ममाप्नोति तव भक्तिमान्।
यदाक्रमण-मात्रेण, क्षणात् त्रिभुवन-क्रम:।।
फल:
साधक को ऐसी पादुका की जोड़ी प्राप्त होती है जिसके द्वारा वह तीनो भुवनों में क्षण मात्र में पहुँचने की शक्ति पा लेता है।
(३) तीसरी माला का ध्यान:
सिद्धाञ्जनं समासाद्य, तेनाञ्जनित लोचन:।
निधिं पश्यति सर्वत्र, भक्तस्तेन समृद्धिमान्।।
फल:
साधक को ऐसे अँजन की प्राप्ती होती है जिसे आँख में लगाने से कहीं भी छिपी निधि को देख और प्राप्त कर सकता है।
(४) चतुर्थ माला का ध्यान:
बिल-द्वारमपावृत्य, पाताल-तल योगिन:।
वीक्ष्य तेभ्यो लब्ध-सिद्ध:,तव भक्त: सुखी भवेत्।।
फल:
‘बिल’ के द्वार को ढँक कर पाताल में रहने वाले योगियों को देख कर उनसे तुरन्त सिद्ध पाकर सुखी होता है।
(५) पाँचवी माला का ध्यान:
वाक्-सिद्धि: द्विविधा प्रोक्ता, शापानुग्रह कारिणी।
महाकवित्व-रूपा च, भक्तस्तेन द्वयास्पद:।।
फल:
शाप और कृपा यह दो प्रकार की महान कवित्व रूपिणी “वाक्” सिद्धि साधक को प्राप्त होता है।
(६) छठी माला का ध्यान:
तथा सिद्धयति ते भक्तो,यच्छरीरस्य पार्वति!।
तप्तकाञ्चन-गौरस्य,कदापि क्वापि न क्षय:।।
फल:
साधक कभी क्षय न होने वाले तप्त सुवर्ण के समान गौर वर्ण वाले शरीर को प्राप्त करता है।
(७) सातवीं माला का ध्यान:
त्वद्भक्त-हस्तस्पर्शेन, लोहोप्यष्ट- विध: शिवे!।
काञ्चनी-भावमाप्नोति, यथा स्याच्छिव-तुल्यता।।
फल:
साधक उस शिव से समान हो जाता है जिसके हाथ के स्पर्श मात्र से आठो प्रकार का लोहा स्वर्ण बन जाता है।
(८) आठवीं माला का ध्यान:
ये अष्टाणुत्व-महत्वाद्या:, स्वेच्छा मात्र प्रकल्पिता:।
तव भक्त-शरीराणां, ते स्युर्नैसर्गिका गुणा:।।
फल:
अणुत्व, महत्व आदि अष्ट सिद्धियाँ वे साधक के शरीर में स्वाभाविक गुण के समान रहती हैं।
(९) नवीं माला का ध्यान:
शरीरमर्थं प्राणांश्च, निवेद्य निज भृत्य-वत्।
तव भक्तान् निषेवन्ते, वशी-भूता नृपादय:।।
फल:
राजा आदि सभी जन साधक के वशीभूत हो सेवक के समान तन-मन-धन से सेवा करते हैं।
(१०) दसवीं माला का ध्यान:
लोहप्राकार-संगुप्ता,निगडैर्यनित्रिता अपि।
त्वद्भक्तै कृष्यमाणाश्च, समायान्त्येव योषित:।।
फल:
लोहे के किले में छिपा कर और जञ्जीरों से बँधी स्त्रियाँ भी साधक द्वारा आकृष्ट किये जाने पर उसके पास पहुँच जाती है।
(६) ग्यारहवीॆ माला का ध्यान:
अम्बिके! तव भक्तानामवलोकन मात्रत:।
कृत्याकृत्य-विमुढा: स्यु:, नरा नार्यो नृपादय:।।
फल:
साधक की दृष्टि पड़ने मात्र से स्त्रियाँ और पुरुष तथा नरेश आदि भी किंकर्त्तव्य-विमुढ हो जाते हैं।
(७) बारहवीं माला का ध्यान:
देवि! त्वद्भक्तमालोक्य, शरीरेन्द्रिय चेतसाम्।
स्तम्भनाद्वैरिण: स्तब्धा:,स्व स्व कार्य पराङ्ग- मुखा:।।
फल:
साधक को देख कर शरीर की इन्द्रियों और मन के स्तम्भित हो जाने के कारण शत्रुगण स्तब्ध हो कर अपने अपने कार्य से विमुख हो जाते है।
(८) तेरहवीं माला का ध्यान:
धर्मं चार्थं च कामं च, मोक्षं चेति चतुष्टयम्।
तव भक्त: स्व-भक्तेभ्य:, प्रयच्छत्य प्रयासत:।।
फल:
साधक थर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों को सहज हीं अपने भक्तों को प्रदान कर देता है।।
(९) चौदहवीं माला का ध्यान:
अलौकिकं लौकिकं चेत्यानन्द द्वितयं सदा।
सुलभं परमेशानि!, त्वत्पादौ भजतां नृणाम्।।
फल:
अलौकिक और लौकिक ये दोनो प्रकार का आनन्द साधक को सदा उपलब्ध रहता है।
(१०) पन्द्रहवीं माला का ध्यान:
या भोगदायिनी देवी, जीवन्मुक्ति- प्रदा न सा।
मोक्षदा तु न भोगाय,ललिता तूभय- प्रदा।।
फल:
भोग देने वाली शक्ति मोक्ष नहीं देती और जो मोक्ष देती है वह शक्ति भोग नहीं देती। किन्तु भगवती ललिता अपने साधक को भोग और मोक्ष दोनो प्रदान करती है।
नोट: उक्त काम्य फलों के लिए संकल्प और विनियोग में यथास्थान उल्लेख करना पड़ता है। विशेष यह है कि प्रचलित खडग माला निष्काम कर्म के लिए है। काम्य फल के लिए उनमें भी परिवर्तन करना पड़ेगा। यह परिवर्तन गुरु मुख से हीं जाना जा सकता है।