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षट्-त्रिंशत तत्व का उपदेश

KAULBHASKAR GURU JI

2022-10-12

षट्-त्रिंशत तत्व का उपदेश महानारायणोपनिषद् , नारद परिव्राजकोपनिषद् में दिया गया है जिन्हें शुद्ध, शुद्धाशुद्ध तथा अशुद्ध कोटि में विभक्त किया गया है –

“शक्तिः साक्षान्महादेवी महादेवस्तु शक्तिमान,

तयोर्विभूतिलेशो वै सर्वमेतच्चराचरम् |

वस्तु किंचिद् चिद्रूपं किंचित्वस्तु चिदात्मकम् ,

इदं शुद्धमशुद्धं च परं चापरमेव च |

यत् संसरति चिच्चक्रमचिच्चक्रसमन्वितम् ,

तदेवा शुद्धमपरिमितरं तु परं शुभम् |

अपरंच परं चैव द्वयं चिद्चिदात्मकम् ,

शिवस्य शिवायाश्च स्वात्म्यं चैत स्वभावतः |

यथा शिवस्तथा देवी यथा देवी तथा शिवः,

नानयोरन्तरं विद्याच्चन्द्र चन्द्रिकयोरिव |”

अर्थात् शक्ति साक्षात् महादेवी है और महादेव शिव ही शक्तिमान हैं | इन दोनों के विभूति अंश से ही यह चराचर सारा जगत् | कोई वस्तु चेतन है तो कोई अचेतन | इन्ही दोनों तत्वों को जीव-जड़ एवं शुद्ध अशुद्ध कहते हैं | पर और अपर भी इन्ही दोनों की संज्ञा है | अचिद् चक्र के साथ चिद् (जीव)संसार का अनुभव कर रहा है-इसे ही अशुद्ध कहते हैं | इनसे भिन्न शुद्ध है | चिद् अचिद् इन तत्वों पर शिव एवं शिवा का अधिकार है | जैसे शिव हैं वैसे हीं शक्ति है इन दोनों की एकता चन्द्र और चंद्रिका की तरह है | शिव, शक्ति, सदाशिव, ईश्वर और शुद्ध विद्या तत्व शुद्ध कहे जाते हैं | माया, कला, विद्या, राग, काल, नियति और पुरुष ये तत्व शुद्धाशुद्ध कहे जाते हैं | शेष प्रकृति से लेकर पृथ्वी पर्यंत चौबीस तत्व जिनका वर्णन सांख्य शास्त्र में किया गया है, उसे अशुद्ध तत्व कहते हैं |

सच्चिदानन्द ब्रह्म से आविर्भूत शिव से लेकर पृथ्वी पर्यंत ३६ तत्वों का स्वरूप इस प्रकार है-

शिव और शक्ति तत्व में आनन्द अंश पूर्ण रूप से है | सदाशिव तत्व से लेकर विद्या तत्व तक चिदंश अनावृत रूप से है | माया से लेकर पृथ्वी पर्यंत सदंश व्यक्त है | परतत्व में सच्चिदानन्द तीनों समान रूप से व्यक्त है | आत्मा शब्द सत्ता का बताने वाला है, विद्या शब्द ज्ञान का और शिव शब्द आनन्द का बताने वाला है |

नटनानन्द ने कामकला विलास की टीका में तत्व का लक्षण इस प्रकार बताया है-

‘आप्रलयं यतिष्ठति सर्वेषां भोग दायिभूताणम् |

तत्तत्वमिति प्रोक्तं न शरीर घटादि तत्वमतः||’

अर्थात् प्रलय पर्यंत सभी भूतों को जो भोग प्रदान करता है उसे तत्व कहते हैं | शरीर घटादि का नाम तत्व नहीं है |