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श्री वनदुर्गा विधान

KAULBHASKAR GURU JI

2023-03-24

संकल्प: देश-कालौ स्मृत्वा अमुक गोत्रोत्पन्न अमुक शर्मा/वर्मा/गुप्तो/दासो ऽहं अमुक कार्य सिद्धयर्थे श्रीवनदुर्गा मन्त्रस्य एकादश-शत संख्यक जपं करिष्ये।

विनियोग: ॐ अस्य श्री वनदुर्गा मन्त्रस्य श्री आरण्यक ऋषि:।अनुष्टुप् छन्द:। श्री वनदुर्गा देवता।ॐ बीजं। स्वाहा शक्ति:। संकल्पोद्दिष्ट कार्य सिद्धयर्थे जपे विनियोग:।

ऋष्यादिन्यास: श्री आरण्यक ऋषये नम: शिरसि ।अनुष्टुप् छन्दसे नम: मुखे। श्री वनदुर्गा देवतायै नम: हृदि ।ॐ बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पादयो:। संकल्पोद्दिष्ट कार्य सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नम: सर्वाङ्गे।

करन्यास:

उत्तिष्ठ पुरुषि अंगुष्ठाभ्यां नम:।

किं स्वपिषि तर्जनीभ्यां नम:।

भयं मे समुपस्थितं मध्यमाभ्यां नम:।

यदि शक्यमशक्यं हुं अनामिकाभ्यां नम:।

तन्मे भगवति कनिष्ठिकाभ्यां नम:।

शमय स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।

हृदयादिन्यास:

उत्तिष्ठ पुरुषि हृदयाय नम:।

किं स्वपिषि शिरसे स्वाहा।

भयं मे समुपस्थितं शिखायै वषट्।

यदि शक्यमशक्यं हुं कवचाय हुम्।

तन्मे भगवति नेत्र-त्रयाय वौषट्।

शमय स्वाहा अस्त्राय फट्।

ध्यान:

सौवर्णासन-संस्थितां त्रिनयनां सौदामिनी-सन्निभाम्।

शङ्खं चक्रवराभयानि दधतीमिन्द्रो: कलां विभ्रतीम्।।

ग्रैवेयाङ्गद-हारकुण्डल-धरामाखण्डलाद्यै: स्तुताम्।

ध्यायेद् विन्ध्य-निवासिनीं शशिमुखीं पार्श्वस्थ पञ्चाननाम्।।

मानसिक पूजन: ‘ल’मित्यादि

मन्त्र:

ॐ उत्तिष्ठ पुरुषि किं स्वपिषि भयं मे समुपस्थितम् यदि शक्यमशक्यं हुं तन्मे भगवति शमय स्वाहा

प्रतिदिन ११ माला जप ४१ दिन तक करे।