प्रसिद्ध शक्ति-सूत्र ग्रन्थ प्रत्यभिज्ञा-हृदय के रचयिता श्री आचार्य क्षेमराज शक्ति-पदार्थ का लक्षण कहते हैं-
चिति: स्वतन्त्रा विश्व-सिद्धि-हेतु: (प्र• ६)
तामग्नि-वर्णां तपसा ज्वलन्तीं वैरोचनीं कर्म-फलेषु जुष्टाम्। दुर्गां देवीं शरणमहं प्रपद्ये सुतरां नाशयते तम:।।
अग्नि के समान रक्त-वर्ण वाली, तप से सदैव प्रज्ज्वलित, कर्म-फल की इच्छा चाहने वाले साधकों से सदैव सेवित, वैरोचनी दुर्गा देवी के शरण जाता हूँ, जो कि अज्ञान-रूपी अन्धकार को अपने आप नष्ट कर देती हैं।
जगत की उत्पत्ति, स्थिति और संहार की सिद्धि के साथ-साथ बन्ध एवं मोक्ष पद प्रदाता अनुग्रह और तिरोधान नामक दो विशेष कृत्य चिति महाशक्ति, जो स्वतन्त्र अर्थात् किसी के(शिव के भी) अधीन नहीं, के द्वारा हीं होती है; इसलिए उसे पञ्चकृत्य-कारिणी भी कहते हैं। सारा विश्व उसी चिति महाशक्ति का हीं परिणाम है। सभी पदार्थ उसी से विकसित हो रहे हैं। सबमें उसी की सत्ता है, और सब वही है। यह शाक्त दर्शन का अन्तिम निर्णय है । इस तत्त्व का साक्षात् करने के लिए उसके दश रूपों यथा दशमहाविद्या की साधना पद्धतियों का निर्माण महर्षियों ने किया है।
शक्ति-साधना में मुख्य रूप से दो क्रम माने जाते हैं-सृष्टि एवं संहार। स्थिति-क्रम सृष्टि के ही अन्तर्गत है। उक्त दशमहाविद्याओं का सृष्टि एवं संहार में अन्तर्भाव होने से दो हीं प्रकार साधना के माने जाते हैं, जिन्हे काली-कुल एवं श्री-कुल कहते हैं।
जगदम्बा के ये दश-स्वरूप बहुत हीं रहस्यमय है। इनकी गोपनीय साधना-पद्धति का परम्परा से प्राप्त शास्त्रीय ज्ञान रखने वाले साधक बहुत हीं दुर्लभ हैं। आज लोग फेसबुक, व्हाट्स एप, युटुब और सामुहिक साधना-शिविरों द्वारा ही इन दश-महाविद्याओं का ज्ञान बाँट और ले रहे हैं।